Tuesday, December 31, 2013
Thursday, December 26, 2013
जिंदगी
जिंदगी जिंदगी एक कहानी की तरह चलती जाती है वक़्त बीत जाता है बस यादें रह जाती हैं दुनिया में कोई मिलता है अपना तो कोई पराया मिल जाता है कहीं थोडा सा धूआं अँधेरे में बदल जाता है तो कहीं हवा तूफ़ान का रूप ले लेती है लिखती तो हूँ में यु हीं पर लिखते लिखते कविता पूरी हो जाती है
Sunday, November 24, 2013
Saturday, November 9, 2013
Short Story by divya kohli
रोहन नौंवी कक्षा का छात्र था ! वह बहुत ही लाडला था ! घर वाले समय समय पर उसे पॉकेटमनी के लिए रूपये देते रहते थे ! कभी उसके माँ पापा कभी दादा दादी तो कभी रिश्तेदार ! लेकिन वह सारे रूपये खर्च देता था ! कभी दोस्तों के साथ पार्टी में तो कभी स्कूल की कैंटीन में ! वैसे पड़ने में तो काफी होशियार था पर कभी पैसे नहीं बचाता था !
फिर रोहन आगे चलता गया कभी वह बेचने के लिए रखे हुए "फ्लावर पॉट्स" को देखे कभी मिठाईयों से सजी दुकानों को तो कभी तो कभी मेले में लगे झूलों को ! फिर एकदम से उसकी नजर एक दूकान पे पड़ी जहाँ एक सजी गेंद रखी हुई थी ! जो उसे बहुत पसंद आयी अब वो उस सुन्दर सी गेंद को लेने की चाह में था , पर वो पहले ही खिलौना कार ले चूका था फिर भी उसके माँ पापा ने उसका शोंक पूरा करने के लिए उसको गेंद खरीदकर देने की बात की जव गेंद का दाम पुछा तो वह २०० रु की थी !
अब उसके माँ पापा उसे वो सजी हुई गेंद खरीदकर नहीं दे सकते थे ! क्यूंकि उनके पास पैसे कम थे ! और रोहन के पास भी पैसे नहीं थे जिससे वो गेंद ले सके क्योंकि वो पहले ही अपनी सारी पॉकेट मनी खर्च चूका था ! तभी उसे ख्याल आया और सजी हुई गेंद को देखकर बोला काश, में अपनी पॉकेट मनी बचाकर से कुछ पैसे बचा पाता तो आज ये गेंद अवश्य मेरी होती ! मेरे माँ पापा या दूसरे बड़े लोगों ने जो पैसे दिए वो सब मेने तुरंत खर्च दिए जिसकी वजह से आज मुझे मन मारना पडा !
तभी उसने कहा " आज के बाद में अपनी पॉकेट मनी बचाकर रखूँगा और जरुरत पड़ने पर ही खर्च करूँगा ! अब उसे एहसास हुआ की धन के आभाव में कैसे मन मारना पड़ता है" ! उसके माँ पापा उसके मुह से यह सब सुनकर अब बहुत खुश थे !
galti ka ehsaas
रोहन नौंवी कक्षा का छात्र था ! वह बहुत ही लाडला था ! घर वाले समय समय पर उसे पॉकेटमनी के लिए रूपये देते रहते थे ! कभी उसके माँ पापा कभी दादा दादी तो कभी रिश्तेदार ! लेकिन वह सारे रूपये खर्च देता था ! कभी दोस्तों के साथ पार्टी में तो कभी स्कूल की कैंटीन में ! वैसे पड़ने में तो काफी होशियार था पर कभी पैसे नहीं बचाता था !
फिर रोहन आगे चलता गया कभी वह बेचने के लिए रखे हुए "फ्लावर पॉट्स" को देखे कभी मिठाईयों से सजी दुकानों को तो कभी तो कभी मेले में लगे झूलों को ! फिर एकदम से उसकी नजर एक दूकान पे पड़ी जहाँ एक सजी गेंद रखी हुई थी ! जो उसे बहुत पसंद आयी अब वो उस सुन्दर सी गेंद को लेने की चाह में था , पर वो पहले ही खिलौना कार ले चूका था फिर भी उसके माँ पापा ने उसका शोंक पूरा करने के लिए उसको गेंद खरीदकर देने की बात की जव गेंद का दाम पुछा तो वह २०० रु की थी !
अब उसके माँ पापा उसे वो सजी हुई गेंद खरीदकर नहीं दे सकते थे ! क्यूंकि उनके पास पैसे कम थे ! और रोहन के पास भी पैसे नहीं थे जिससे वो गेंद ले सके क्योंकि वो पहले ही अपनी सारी पॉकेट मनी खर्च चूका था ! तभी उसे ख्याल आया और सजी हुई गेंद को देखकर बोला काश, में अपनी पॉकेट मनी बचाकर से कुछ पैसे बचा पाता तो आज ये गेंद अवश्य मेरी होती ! मेरे माँ पापा या दूसरे बड़े लोगों ने जो पैसे दिए वो सब मेने तुरंत खर्च दिए जिसकी वजह से आज मुझे मन मारना पडा !
तभी उसने कहा " आज के बाद में अपनी पॉकेट मनी बचाकर रखूँगा और जरुरत पड़ने पर ही खर्च करूँगा ! अब उसे एहसास हुआ की धन के आभाव में कैसे मन मारना पड़ता है" ! उसके माँ पापा उसके मुह से यह सब सुनकर अब बहुत खुश थे !
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