Monday, February 13, 2017

देशभक्ति व्यक्त करने का असभ्य तरीका


13 फरवरी की शाम से मै बहुत परेशान थी ,  valentine डे को लेकर नहीं बल्कि किसी अन्य कारण से ! मामला ये है की मेरे प्रोफाइल मेरे कुछ मित्रों ने 13फरवरी को अपडेट किया की आज हम लोगों को valentine डे तो याद है लेकिन 14 फरवरी को शहीदे आज़म भगत सिंह , सुखदेव और शिवराम राजगुरु  को फाँसी पर लटकाया गया था ,ये किसी को याद नहीं है !"  अब ये वाकई अचम्भे की बात है क्योंकि सभी जानते है 7 अक्टूबर 1930 को इन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गयी थी और भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फाँसी पर लटकाया गया था !ये गलत अपडेट दी  और इसीलिए मै एक पोस्ट इसी बात पर लिख रही हूँ !14 फरवरी को valentine डे का विरोध करने के लिए बहुत से लोगों ने इस गलत बात का मैसेज के द्वारा खूब प्रचार किया !पूरे देश में ये मैसेज  चला कि  आज हम लोगों को valentine डे तो याद है लेकिन 14 फरवरी को शहीदे आज़म भगत सिंह , सुखदेव और शिवराम राजगुरु  को फाँसी पर लटकाया गया था ,ये किसी को याद नहीं है ! लोग valentine डे के विरोध के चक्कर में खुद ये भूल गए कि भगत सिंह और उनके साथियो को फाँसी कब हुई थी और  मैसेज के द्वारा अन्य लोगों को यही ताना मारते रहे कि भगत सिंह कि फाँसी का किसी को याद नहीं ! काफी हास्यास्पद बात है ! अब ये मैसेज कहा से आया ये तो पता नहीं ।  लोग ये भूल गए कि भगत सिंह को फाँसी 23 मार्च को हुई थी और सब लोग 14 फरवरी को ही उन्हें फाँसी पर जबरदस्ती लटका रहे है ! असल में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की जिंदगी में 14 फरवरी का महत्व बस इतना है कि प्रिविसी काउंसिल द्वारा अपील खारिज किए जाने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय ने 14 फरवरी 1931 को लॉर्ड इरविन के समक्ष दया याचिका दाख‍िल की थी, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया।वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले कम से कम देश के शूरवीरों से जुड़े तथ्यों को लेकर युवाओं को गुमराह न करें। ये इतने संवेदनशील मुद्दे हैं, कि इनसे हजारों लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।
और सब लोगों ने इस मैसेज को पढ़ा और अपनी देशभक्ति दिखाते हुए इसे फारवर्ड भी किया ! इससे ये साबित होता है कि हाँ वास्तव में हम लोग अपने प्रेरणा पुरुषों  को भूलते जा रहे है ! अगर इस तरह का कोई डे 5 जनवरी को या किसी भी दिन हो और मै सबको मैसेज कर दू कि आज उधम सिंह को फाँसी हुई थी लेकिन सब ये डे माना रहे है तो लोग उसे पढेंगे भी और आगे भेजेंगे भी ! यानि कि उन्हें पता ही नहीं है कि ऐसा हुआ था या नहीं ?
ऐसे स्तिथि वाकई में खतरनाक है क्योंकि जब कोई देश या समाज अपने प्रेरणा पुरुषों को, अपनी संस्कृति को ,अपने इतिहास को भूलने लगता है  तब वो अपने पतन कि ओर अग्रसर होने लगता है ! हाँ उस पतन का प्रारंभिक स्वरुप नैतिक हो सकता है !
अब ये मैसेज 14 फरवरी के दिन ऐसे क्यों चला , इस बारे में जब दोस्तों से चर्चा हुई तो पता लगा कि शायद १३ फरवरी १९३१ को भगत सिंह को फाँसी कि सजा सुने गयी थी ( मै अभी आस्वस्त नहीं हूँ कि ऐसा हुआ था , यदि किसी को पता है तो जरुर बताये ) ! किसी ने ऐसा मैसेज भेजा होगा बाकी चलते -२ कुछ छोड़ते हुए तो कुछ जोड़ते हुए कुछ और ही बन गया !
फिर भी हम सभी को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि कम से कम हमारे प्रेरणा पुरुषों के साथ ऐसा न हो ! valentine डे जैसे फालतू त्योहारों /पर्वो या फिर पता नहीं क्या है के चक्कर में हम अपने इतिहास को न भूलें ! इतिहास के बिना क्या हाल होता है इसका एक उदहारण हम पाकिस्तान के रूप में देख रहे है !

Friday, February 10, 2017

Divya Kohli Poetry गाय की पीड़ा

एक गाय की पीड़ा

मै हूँ गाय
वही गाय जिसे पुराणों में
उच्च स्थान मिला है  ।
भारतीय संस्कृति के अनुसार
जिसमें 33 कोटि
देवी देवता निवास करते हैं ।
मै वही गाय हूँ
जिसका वर्णन आपको
कृष्ण काल में मिलता है ।

मै वही हूँ
जिसे भारत में
माता माना जाता है 
जी हाँ माता और
गौवर्धन पूजा के दिन
हार भी पहनाया जाता है।
जिसकी घर घर में
पूजा की जाती है ।
हिन्दू धर्म में मेरा ही गौमूत्र पिलाकर
नवजात बच्चे का शुद्धिकरण किया जाता है ।

मै वही हूँ
जिसका दूध ..माखन, मिठाई , दहीं ,
लस्सी बनाने के काम आता है ।
मेरे द्वारा तुम लोगों को
कितना फायदा दिया जाता  है ।
कुछ लोग मेरा दूध बेचकर
अपने परिवार का
पालन पोषण करते हैं ।

मै ही हूँ वो
जिसके बारे में
पहली दूसरी कक्षा के बच्चों को
शिक्षा मंदिरों में पढ़ाया जाता है ।
मेरे कई गुण बताये जाते हैं ।

मै वही हूँ
जो जब दूध न दे पाये
मालिक के परिवार के पालन पोषण
में अपना कर्तव्य न निभा सके
या किसी कारणवश बीमार हो जाए।
तो चोरी छिपे दूर कहीं जिसे
भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है ।

बहुत पीड़ा होती है मुझे
जब सड़कों पर धक्के खाती हूँ
तेज़ गति से आ रही
गाड़ियों से टकराती हूँ ।
और टक्कर खा कर जब
नालियों में गिर जाती हूँ ।

पीड़ा होती है
तब जब भूख लगने पर मै
खेतों में जाती हूँ और
मालिकों के द्वारा मुझे डंडा मारकर
भगाया जाता है।
कई बार तो तेज़दार हथियारों के प्रहार से
लथपथ होकर गिर जाती हूँ ।
तब भी उस मालिक को रहम नहीं आता ।
और आखिर फिर लौट जाना पड़ता है
बिना भूख मिटाये
किसी राह की और ।

पीड़ा तो मुझे तब भी होती है
जब राजनीतिक दलों के द्वारा
मुझे मुद्दे के तौर पर अपनाया जाता है ।
टीवी समाचार पत्रों में मुझे
मुख्य पन्नों में छपाया जाता है और
इस प्रकार मेरे जख्मों पर
नमक का मरहम लगाया जाता है ।

मै तो जहाँ थी वहीं रह जाती हूँ ।
अत्यन्त पीड़ा में डरी व् सहमी सी ।
इधर उधर भागती भूख मिटाने के लिए।

दिव्या कोहली (शाहपुर)
कविता कैसी लगी अवश्य बताएं
divyakohli786@gmail.com