Friday, February 10, 2017

Divya Kohli Poetry गाय की पीड़ा

एक गाय की पीड़ा

मै हूँ गाय
वही गाय जिसे पुराणों में
उच्च स्थान मिला है  ।
भारतीय संस्कृति के अनुसार
जिसमें 33 कोटि
देवी देवता निवास करते हैं ।
मै वही गाय हूँ
जिसका वर्णन आपको
कृष्ण काल में मिलता है ।

मै वही हूँ
जिसे भारत में
माता माना जाता है 
जी हाँ माता और
गौवर्धन पूजा के दिन
हार भी पहनाया जाता है।
जिसकी घर घर में
पूजा की जाती है ।
हिन्दू धर्म में मेरा ही गौमूत्र पिलाकर
नवजात बच्चे का शुद्धिकरण किया जाता है ।

मै वही हूँ
जिसका दूध ..माखन, मिठाई , दहीं ,
लस्सी बनाने के काम आता है ।
मेरे द्वारा तुम लोगों को
कितना फायदा दिया जाता  है ।
कुछ लोग मेरा दूध बेचकर
अपने परिवार का
पालन पोषण करते हैं ।

मै ही हूँ वो
जिसके बारे में
पहली दूसरी कक्षा के बच्चों को
शिक्षा मंदिरों में पढ़ाया जाता है ।
मेरे कई गुण बताये जाते हैं ।

मै वही हूँ
जो जब दूध न दे पाये
मालिक के परिवार के पालन पोषण
में अपना कर्तव्य न निभा सके
या किसी कारणवश बीमार हो जाए।
तो चोरी छिपे दूर कहीं जिसे
भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है ।

बहुत पीड़ा होती है मुझे
जब सड़कों पर धक्के खाती हूँ
तेज़ गति से आ रही
गाड़ियों से टकराती हूँ ।
और टक्कर खा कर जब
नालियों में गिर जाती हूँ ।

पीड़ा होती है
तब जब भूख लगने पर मै
खेतों में जाती हूँ और
मालिकों के द्वारा मुझे डंडा मारकर
भगाया जाता है।
कई बार तो तेज़दार हथियारों के प्रहार से
लथपथ होकर गिर जाती हूँ ।
तब भी उस मालिक को रहम नहीं आता ।
और आखिर फिर लौट जाना पड़ता है
बिना भूख मिटाये
किसी राह की और ।

पीड़ा तो मुझे तब भी होती है
जब राजनीतिक दलों के द्वारा
मुझे मुद्दे के तौर पर अपनाया जाता है ।
टीवी समाचार पत्रों में मुझे
मुख्य पन्नों में छपाया जाता है और
इस प्रकार मेरे जख्मों पर
नमक का मरहम लगाया जाता है ।

मै तो जहाँ थी वहीं रह जाती हूँ ।
अत्यन्त पीड़ा में डरी व् सहमी सी ।
इधर उधर भागती भूख मिटाने के लिए।

दिव्या कोहली (शाहपुर)
कविता कैसी लगी अवश्य बताएं
divyakohli786@gmail.com

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