मिट्टी के हैं पुतले इंसान नहीं दिखते
अब तो पत्थर में भी भगवान नहीं दिखते ।
देख लो उन्हीं को जो चार चांद लगाये बैठे हैं
वो भी तो हैं जिनकी झोंपड़ियां साये हैं ।
अहंकार ने जिनको घेर रखा है
कहते हैं वो ये मेरा ,वो मेरा सब मेरा है ।
छोटे हैं परिवार फिर भी झमेले पड़ रहे हैं
पति पत्नी , भाई भाई आपस मे लड़ रहे हैं ।
संस्कारों को खो दिया और अब मान मर्यादाएं टूट रही हैं
बेटियां घर से निकलने को डर रही हैं ।
रोज नए नए खुलासे हो रहे हैं
दंड के भागी सरेआम सीना ताने चल रहे हैं ।
देश मेरा तरक्की कर रहा है
खुद ही देख लो कैसे पथ पर बढ़ रहा है ।
दिव्या कोहली
शाहपुर ।
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