Thursday, August 17, 2017

Divya kohli poetry

मिट्टी के हैं पुतले इंसान नहीं दिखते
अब तो पत्थर में भी भगवान नहीं दिखते ।

देख लो उन्हीं को जो चार चांद लगाये बैठे हैं
वो भी तो हैं जिनकी झोंपड़ियां साये हैं ।

अहंकार ने जिनको घेर रखा  है
कहते हैं वो ये मेरा ,वो मेरा सब मेरा है ।

छोटे हैं परिवार फिर भी झमेले पड़ रहे हैं
पति पत्नी , भाई भाई आपस मे लड़ रहे हैं ।

संस्कारों को खो दिया और अब मान मर्यादाएं टूट रही हैं
बेटियां घर से निकलने को डर रही हैं ।

रोज नए नए खुलासे हो रहे हैं
दंड के भागी सरेआम सीना ताने चल रहे हैं ।

देश मेरा तरक्की कर रहा है
खुद ही देख लो कैसे पथ पर बढ़ रहा है ।

दिव्या कोहली
शाहपुर ।

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