मेरा अस्तित्व
मैं हूँ पहाड़
अथाह खड़ा
न जाने कब तक है मेरा अस्तित्व
है भी या नहीं
कब कर दिया जाएगा मुझे छलनी
मेरे सीने पर विस्फोटक तत्वों ,हथौड़ों से प्रहार किया जाएगा
मैं टूट कर बिखर जाऊंगा
मेरे सीने में बहुत दर्द होगा
तुम देखते रहना
मुझे मेरे स्थान से हिलाने का प्रयत्न किया जाएगा
ओर तुम्हारा प्रयत्न रंग भी लाएगा
मै चकनाचूर हो जाऊंगा
अगर थोड़ा बहुत अस्तित्व रह भी गया तो ,
प्राकृतिक ताकतें हिलोरे देकर उसे मिटाने की कोशिश करेंगी
ओर उनकी कोशिश भी रंग लाएगी
बस यही है मेरा अस्तित्व
टूटना ओर टूट कर बिखर जाना।
दिव्या कोहली
शाहपुर
बहुत ही खूबसूरत शब्दों से आपने प्रकृति के दोहन को चित्रित किया है।
ReplyDeleteअशेष शुभकामनाएं।
हार्दिक आभार
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